Saturday 9 February 2013


मेरी माँ





मैं एक मीठी नींद लेना चाहता  हूँ
४४  की उम्र में भी चाहता हूँ कि
मेरे सर पर हाथ रख कर कोई कहे
सब ठीक हो जाएगा
ठीक वैसे ही जैसे बचपन में माँ
हमें बहलाया करती थी
हमारी उम्मीदें जगाती थीं
मैं इस उम्र में माँ की गोद में
सुकून की नींद लेना चाहता  हूँ
जानता  हूँ समय ठहरता नहीं
बचपन पीछे लौट चुका है
हर वक्त  में वह अपने को मिटाती रही है
घर के लिए सुकून और ख़ुशी तलाशती रही है
यह वही उजाला है जिसे हमारी माँ ने
सूरज से चुराया था , बादलों से छिपाया था
हवा के थपेड़ों से बचाया था
 वही रोशनी है यह जिससे रौशन है अभय“ !

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