मेरी माँ
मैं एक मीठी नींद
लेना चाहता हूँ
४४ की उम्र में भी
चाहता हूँ कि
मेरे सर पर हाथ
रख कर कोई कहे
सब ठीक हो जाएगा
ठीक वैसे ही जैसे
बचपन में माँ
हमें बहलाया करती
थी
हमारी उम्मीदें
जगाती थीं
मैं इस उम्र में
माँ की गोद में
सुकून की नींद
लेना चाहता हूँ
जानता हूँ समय ठहरता नहीं
बचपन पीछे लौट
चुका है
हर वक्त में वह अपने को मिटाती रही है
घर के लिए सुकून
और ख़ुशी तलाशती रही है
यह वही उजाला है
जिसे हमारी माँ ने
सूरज से चुराया
था , बादलों से छिपाया था
हवा के थपेड़ों
से बचाया था
वही रोशनी है यह जिससे रौशन है “अभय“ !